Hindi kahani with moral
एक दिन वह रोज की तरह मछली पकड़ने गया, जैसे ही मछुआरे ने जाल फेंका तो उसमें बहुत सी मछलियाँ फंस गयीं |
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अब मछुआरा फंसी हुई मछलियों को जाल से निकालकर अपने पात्र में रखने लगा तभी उसको एक आवाज़ सुनाई दी – मुझे मत पकड़ो, मुझे छोड़ दो | मछुआरे ने आवाज़ सुनकर इधर उधर देखा लेकिन वहां कोई नहीं था |
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थोड़ी देर बाद फिर से आवाज़ आई – हे मछुआरे मुझे छोड़ दे | मछुआरे ने ध्यान से पात्र की तरफ देखा तो वह हैरान हो गया, एक छोटी सी मछली जो बोल रही थी |
मछुआरे ने पूछा – तुम बोल कैसे सकती हो ? कौन हो तुम ? और अगर मैं तुम्हें छोड़ दूं तो खाऊंगा क्या ? मेरी आजीविका कैसे चलेगी ?
मछली ने मुछुआरे से कहा – तुम मुझे छोड़ दो, मैं तुम्हें इसके बदले में ढेर सारा धन दूंगी या जो भी तुम मांगोगे मैं तुम्हें दूंगी |
मछुआरे ने कहा – ठीक है ! मैं सभी मछलियों को छोड़ दूंगा यदि तुम मुझे पर्याप्त धन दो |
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मछली ने अपनी माया से मछुआरे के पात्र को सोने चांदी एवं मोतियों से भर दिया | यह देखकर मछुआरे ने सभी मछलियों को वापस समुंदर में छोड़ दिया और पात्र का धन लेकर वापस घर चल दिया |
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घर पहुँचकर मछुआरिन ने पूछा – मछलियाँ कहाँ हैं ? मछुआरे ने धन भरे पात्र को मछुआरिन को दे दिया और कहा – आज मछ्लियां तो नहीं है लेकिन उससे भी ज्यादा कीमती चीज़ है |
मछुआरिन ने जैसे ही पात्र में सोना चांदी आदि देखा तो वह दंग रह गयी | मछुआरिन ने पूछा – ये सब कहाँ से लाये हो आप ? क्या आपने चोरी की है ?
मछुआरे ने सारी बात अपनी पत्नी को बताई कि एक चमत्कारी मछली ने उसे यह सब दिया है |
मछुआरिन ने कहा – अगर ऐसी बात है तो तुम्हे मछली से और अधिक धन माँगना चाहिए था जिससे हमारे दिन बदल सकें, यह धन भला कितने दिन चलेगा, वह जरुर कोई दिव्य आत्मा है, यदि तुम इस बार वहां जाओ तो मछली से ढेर सारा धन माँगना जिससे हमें फिर से मछली पकड़ने का ये तुच्छ काम न करना पड़े और हमारे दिन बदल सकें |
मछुआरे ने अपनी पत्नी की बात मान ली और वह कुछ दिन बाद वापस समुंदर के किनारे गया | मछुआरे ने समुंदर के किनारे पहुंचकर मछली को आवाज़ दी |
आवाज़ सुनकर वह चमत्कारी मछली किनारे आ गयी और पूछा – क्या बात है ?
मछुआरे ने कहा – यदि आप सच में मेरा भला करना चाहती हैं तो मुझे इस मछली पकड़ने के तुच्छ काम से निजात दिलाएं, मैं कोई अन्य व्यापार करना चाहता हूँ और इसके लिए मुझे बहुत सारे धन की आवश्यकता है |
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मछली ने मछुआरे की बात सुनकर उसको ढेर सारा धन दे दिया | मछुआरा धन लेकर घर गया और अपनी पत्नी को सारा धन दे दिया | दोनों पति पत्नी बहुत खुश हुए और ठाट से रहने लगे |
कुछ ही दिनों में मछुआरिन को महसूस हुआ कि उनके पास धन तो बहुत है लेकिन गाँव के लोग उन्हें अभी भी मछुआरा ही समझते हैं, उन्हें वह सम्मान नहीं देते |
मछुआरिन ने अपने पति से कहा – ऐसे धन का क्या फायदा जब लोग तुम्हें सम्मान न दें | मछुआरे ने कहा – क्या चाहती हो तुम ?
मछुआरिन बोली – ऐसे धन का क्या लाभ है, लोग तो अभी भी हमें मछुआरा ही समझतें हैं, तुम उस मछली के पास जाओ और कहो कि हमें इस नगर का राजा बना दे ताकि लोग हमारा सम्मान करें |
मछुआरे ने कहा – इतना लालच करना ठीक नहीं, मछली ने यदि मना कर दिया तो ?
मछुआरिन बोली – तुम जाओ तो, वह भला क्यों मना करेगी | उसको कहना कि तुम्हारे दिए धन का क्या लाभ जब लोग हमारा सम्मान ही नहीं करते |
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मछुआरा फिर से मछली के पास जाता है और सारी बात बताता है | मछली अपनी माया से मछुआरे को राजा बना देती है और एक शानदार महल शहर के बीचोंबीच बनकर तैयार हो जाता है |
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मछुआरा और उसकी पत्नी दोनों बहुत खुश होते हैं और ठाट से वहां रहने लगते हैं |
कुछ समय बाद मछुआरिन को एहसास होता है कि आस पड़ोस के अन्य राजा उससे ज्यादा धनी एवं समृद्ध हैं, उसके मन में फिर से लालच आता है और अपने पति से कहती है – कैसा हो यदि तुम चक्रवर्ती सम्राट बन जाओ और सारे राजा तुम्हारे अधीन हो जाएँ |
मछुआरा मना करता है और कहता है – इतना अधिक लालच करना ठीक नहीं, अब हमें भला किस चीज़ की कमी है ?
मछुआरिन कहती है – तुम्हें कौन सा कुछ करना है, बस तुम जाओ और मछली से कहो कि तुम्हें चक्रवर्ती सम्राट बना दे |
मछुआरा पत्नी के आगे विवश होकर फिर से मछली के पास जाता है और कहता है कि मुझे चक्रवर्ती सम्राट बना दो, सारे अन्य राजा मेरे अधीन हो जाएँ |
मछली अपनी माया से उसे चक्रवर्ती सम्राट बना देती है | अब मछुआरा चक्रवर्ती सम्राट बन जाता है और दोनों पति पत्नी ख़ुशी ख़ुशी रहने लगते हैं |
कुछ समय बाद फिर से मछुआरिन का लालच बढ़ता है और अपने पति से कहती है – कैसा हो यदि सूर्य, चंद्रमा, मेघ आदि तुम्हारी आज्ञा मानें, जब तुम चाहो तब बारिश हो, जब तुम चाहो तब दिन हो और जब तुम चाहो तब रात हो |
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मछुआरा कहता है – तुम्हारा दिमाग ख़राब हो गया है क्या ? ऐसा भला कैसे हो सकता है ?
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मछुआरिन कहती है – मछली से कहकर देखो, जब इतना कुछ कर सकती है तो ये भी कर सकती है |
मछुआरा कहता है – मैं जैसा हूँ, ऐसा ही ठीक हूँ | मुझे इससे अधिक और कुछ नहीं चाहिए |
मछुआरिन कहती है – तुम्हें नहीं चाहिए लेकिन मुझे चाहिए, मछली से कहो कि सूर्य, चंद्रमा, मेघ आदि मेरी आज्ञा मानें |
मछुआरा फिर से मछली के पास जाता है और सारी बात बताता है | सारी बातें सुनकर मछली को क्रोध आ जाता है |
मछली कहती है – तू और तेरी पत्नी दोनों मूर्ख हो, तुम्हें इतना भी नहीं पता कि सूर्य चंद्रमा ये सब मनुष्य के हाथ में नहीं है, मैंने तुम्हें पहचानने में भूल कर दी, वास्तव में तुम इस धन एवं सम्मान के काबिल नहीं हो | जाओ तुम जैसे पहले थे वैसे ही बन जाओ |
मछुआरा और उसकी पत्नी फिर से पहले की तरह गरीब बन जाते हैं |
इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि ज्यादा लालच करना कभी कभी सर्वनाश का कारण बन जाता है इसलिए हमें अधिक लालच नहीं करना चाहिए और अपनी मेहनत से सफलता हासिल करनी चाहिए न कि दूसरे की कृपा से | ***
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