Mythological story in Hindi
बहुत पुरानी बात है, कैकय नामक देश पर राजा सत्यकेतु राज्य करता था | राजा बहुत ही गुणी, पराक्रमी, विद्वानों का आदर करने वाला तथा न्यायप्रिय था |
राजा के दो पुत्र थे – प्रतापभानु और अरिमर्दन | दोनों पुत्र बड़े वीर तथा पिता के ही समान गुणवान थे | समय बीता और बड़े पुत्र का राज्यभिषेक का अवसर आया | राजा प्रतापभानु ने राजसूय यज्ञ का आयोजन किया तथा समस्त राजाओं को अपनी आधीनता स्वीकार करने हेतु सन्देश भेजा |
बहुत से राजाओं ने प्रतापभानु की आधीनता स्वीकार की और जिन राजाओं ने आधीनता स्वीकार करने से मना किया, उनके विरुद्ध युद्ध की धोषणा कर दी गयी और प्रतापभानु ने युद्ध में उनको हराकर अपने अधीन कर लिया | इस प्रकार राजा प्रतापभानु एक चक्रवर्ती सम्राट बन गया |
कथाओ के अनुसार राजा प्रतापभानु ने समस्त पृथ्वी पर अपना अधिकार कर लिया | इसमें राजा के छोटे भाई अरिमर्दन ने अपने भाई का कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया | धर्मरुचि नामक राजा का एक मंत्री था जो बहुत ही बुद्धिमान तथा राजा का बफादार था, राजा प्रतापभानु उसी की सलाह पर कार्य करता था |
Mythological story in Hindi
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Mythological story in Hindi |
एक दिन राजा प्रतापभानु शिकार खेलने के लिए जंगल में गया, उसने अनेक सुंदर सुंदर हिरणों का शिकार किया, शिकार करता करता वह काफी दूर निकल आया कि तभी उसकी नज़र एक अद्भुत सूअर पर पड़ी, उसके दांतों को देखकर ऐसा प्रतीत होता था मानो राहू चंद्रमा को ग्रसकर वन में छिप गया हो और चंद्रमा बड़ा होने के कारण वो उसको न तो निगल पा रहा हो और न ही बाहर उगल पा रहा हो |
ऐसा अद्भुत विशालकाय सूअर राजा ने पहले कभी नहीं देखा था | राजा ने उस सूअर का शिकार करने का मन बनाया और उसका पीछा करना शुरू कर दिया | राजा बार बार तीर चलाता, सूअर बार बार बच निकलता | राजा ने सूअर का पीछा नहीं छोड़ा, सूअर भी कभी झाडी में छिप जाता तो कभी सामने आ जाता |
ऐसा करते करते सुबह से शाम हो गयी पर सूअर राजा के हाथ नहीं आया | राजा बहुत थक चुका था, उसे बहुत तेज़ प्यास लग रही थी | पानी की तलाश में राजा इधर उधर पानी ढूँढने लगा कि तभी राजा की नज़र पास में ही एक कुटिया पर पड़ी |
राजा ने सोचा अवश्य ही यहाँ कोई रहता होगा तो मुझे पानी अवश्य मिल जायेगा, ऐसा सोचकर राजा कुटिया के पास पहुंचा तो देखा कि एक साधू वहां तपस्या कर रहे थे |
दरअसल वह कोई साधू नहीं था, वह राजा प्रतापभानु से युद्ध में हारा हुआ एक राजा था जो हारने से अपमानित होकर वापस अपने राज्य नहीं लौटा था और राजा से बदला लेने की लिए ही योजना बना रहा था |
उसने ‘कालकेतु’ नामक एक राक्षस से राजा प्रतापभानु से बदला लेने के लिए सहायता मांगी थी और वही कालकेतु सूअर का रूप रखकर राजा को भटकाता उसके पास ले आया था |
बहरहाल राजा प्रतापभानु प्यास से बेहाल था, वह साधू के वेश में बैठे कपटी राजा को पहचान नहीं पाया | प्रतापभानु ने साधू से पूछा – क्या मुझे थोडा जल मिलेगा, मुझे प्यास लगी है | साधू ने उत्तर दिया - अवश्य ! मैं अभी आपके लिए जल देता हूँ |
साधू ने राजा प्रतापभानु को जल दिया, राजा ने जल पिया और साधू को धन्यवाद कहा | साधू तो राजा प्रतापभानु को अच्छे से पहचानता था लेकिन फिर भी साधू ने राजा से उसका परिचय पूछा |
राजा ने झूठ बोलते हुए कहा – मैं राजा प्रतापभानु का मंत्री धर्मरुचि हूँ, मार्ग से भटक कर यहाँ आ गया हूँ, आप कौन है मान्यवर ?
Mythological story in Hindi
साधू बोला – मेरा नाम एकतनु है, सृष्टि की उत्पत्ति के समय से ही मैं इसी देह के साथ पृथ्वी पर हूँ इसलिए स्वयं ब्रह्मा जी ने मेरा नाम भी एकतनु रखा है, मैं सबकुछ जानता हूँ, मुझसे कुछ भी छिपा नहीं है, मैं ये भी जानता हूँ की तुम असत्य बोल रहे हो, तुम कोई मंत्री नहीं बल्कि स्वयं राजा प्रतापभानु हो, पर मुझे तुम्हारे इस झूठ से कोई आपत्ति नहीं है, क्योकि सुरक्षा कारणों से तुमने ऐसा बोला है |
राजा प्रतापभानु उस कपटी साधू को सचमुच एकतनु मानकर उसके पैरों में गिर गए, उन्होंने साधू से क्षमा मांगी और कहा – प्रभु आप जैसे विलक्षण आत्मा को मैं पहचान नहीं सका, मुझे क्षमा करो |
साधू ने कहा – कोई बात नहीं, हम तुमसे अति प्रसन्न हैं, मांगो क्या मांगते हो ? राजा ने कहा – प्रभु मैं तो समस्त पृथ्वी को जीत चुका हूँ, मेरे यश में और अधिक वृद्धि हो |
साधू ने कहा – बेशक तुमने सम्पूर्ण पृथ्वी को जीत लिया है किन्तु तुम्हे ब्राह्मणों से सावधान रहना होगा | मैं देख रहा हूँ कि ब्राह्मणों से तुम्हे खतरा है, तुम्हे उन्हें भी अपने वश में करना होगा | ब्राह्मणों के शाप से बड़े बड़े राजा अपना सर्वस्व खो बैठे हैं इसलिए तुम्हे ऐसा कुछ करना होगा कि समस्त ब्राह्मण तुम्हारे वश में हो जाए |
राजा प्रतापभानु तो उस साधू को सचमुच ज्ञानी समझ रहे थे इसलिए उन्होंने बड़े विनम्र भाव से पूछा – ऐसा कैसे होगा प्रभु ?
कपटी साधू ने कहा – मेरे हाथो में वो शक्ति है जिससे ऐसा होगा, तुम एक कार्य करो, तुम अपने राज्य वापस जाओ और कल से सभी ब्राह्मणों को निमंत्रण भेजो कि तुम प्रतिदिन एक लाख ब्राह्मणों को भोजन कराओगे, मैं तुम्हारे राज पुरोहित के रूप में वहां आऊंगा और तुम्हारी रसोई में खुद भोजन तैयार करूँगा, जो भी उस भोजन को खायेगा, वो हमेशा के लिए तुम्हारे वश में हो जायेगा |
राजा प्रतापभानु ने कहा – प्रभु मैं तो अपने राज्य से इतना दूर आ गया हूँ, मुझे वापस पहुँचने में भी समय लगेगा, इतना सब इतनी जल्दी कैसे होगा | कपटी साधू बोला – अभी रात्रि हो चुकी है, तुम आराम से यहाँ सो जाओ, मैं अपनी शक्ति से तुम्हे तुम्हारे राज्य पहुंचा दूंगा |
राजा प्रतापभानु वैसे भी बहुत थक चुके थे वे लेटते ही शीघ्र सो गए | कपटी साधू जो बदले की आग में सुलग रहा था, भला उसको नींद कहाँ आने वाली थी, उसने सूअर बने राक्षस कालकेतु को तुरंत वहां बुलाया और कहा – तुम इस राजा को अपनी माया से इसके घोड़े और रथ सहित इसके महल में पंहुचा दो |
कालकेतु ने अपनी माया से राजा को सोते हुए ही रथ सहित उसके महल में पहुंचा दिया और घोड़ों को अश्वशाला में बाँध दिया तथा राजा को महल में रानी के समीप सुला दिया | कालकेतु ने राजा के राज पुरोहित को उसके घर से सोते हुए ही उठा लिया और कपटी साधू के पास छोड़ दिया |
राजा प्रतापभानु जब सुबह उठे तो खुद को रानी के पास महल में पाया, वे इस चमत्कार
से दंग रह गए, उन्हें साधू की बात पर और अधिक् विश्वास हो गया, उन्होंने तुरंत चारों ओर घोषणा करा दी कि वे प्रतिदिन एक लाख ब्राह्मणों को भोजन कराएँगे |
तभी कालकेतु राज पुरोहित का वेश धरकर राजा के यहाँ पहुँच गया | राजा प्रतापभानु ने सोचा कि वही साधू राज पुरोहित बनकर आये हैं | राजा ने ब्राह्मणों के लिए रसोई तैयार की और राजपुरोहित बने कालकेतु को खाना बनाने की जिम्मेदारी दे दी |
अब चूंकि कपटी साधू और कालकेतु तो राजा प्रतापभानु से बदला लेना चाहते थे, इसीलिए तो उन्होंने ये योजना बनायीं थी | कालकेतु ने ब्राह्मणों के लिए बनाये खाने में मांस मिला दिया जिसमें गाय और ब्राह्मणों का मांस भी सम्मिलित था |
ब्राह्मणों के लिए खाना परोशा गया और जैसे ही ब्राह्मण खाना खाने ही वाले थे कि तभी आकाशवाणी हुई - हे ब्राह्मणों इस भोजन को मत खाओ, इसमें मांस मिला है, अगर तुमने ऐसा किया तो तुम सभी दूषित हो जाओगे |
आकाशवाणी सुनकर ब्राह्मणों को बहुत क्रोध आया, उन्होंने राजा प्रतापभानु को श्राप दिया कि ऐसे घ्रणित कार्य तो राक्षस ही करते हैं तो जाओ तुम परिवार सहित राक्षस योनि को प्राप्त हो और तुम्हारा सर्वनाश हो जाये |
ब्राह्मणों का श्राप सुनकर फिर से आकाशवाणी हुई – हे ब्राह्मणों, जो भी कुछ हुआ उसमें राजा प्रतापभानु का कोई दोष नहीं, ये सब कालकेतु ने किया है, अतः राजा को इसका दोष देना उचित नहीं है |
ब्राह्मणों ने कहा – हमारा श्राप निष्फल नहीं हो सकता और न ही हम श्राप को वपस ले सकते हैं, लेकिन राक्षस बनने पर स्वयं भगवान् के हाथो से तुम्हे मुक्ति मिलेगी और तुम इस श्राप से मुक्त हो सकोगे |
इसके कुछ समय बाद ही एक युद्ध में राजा प्रतापभानु और अरिमर्दन की मृत्यु हो गयी तथा शीघ्र ही श्राप के कारण उसके कुल का नाश हो गया |
राजा प्रतापभानु ने ही रावण के रूप में जन्म लिया, उनके भाई अरिमर्दन ने कुम्भकरण के रूप में और मंत्री धर्मरुचि ने सौतेले भाई विभीषण के रूप में जन्म लिया | ***
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